आर्य अष्टांगिक मार्ग वाक्य
उच्चारण: [ aarey asetaanegaik maarega ]
उदाहरण वाक्य
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- तो आर्य अष्टांगिक मार्ग की बात करो ।
- वह मार्ग का नाम है आर्य अष्टांगिक मार्ग.
- वह मार्ग का नाम है आर्य अष्टांगिक मार्ग.
- महामानव बुद्ध का आर्य अष्टांगिक मार्ग
- इसलिए पंचशील को छोड़ो, आर्य अष्टांगिक मार्ग को अपना ओ.!
- चतुर्थ आर्यसत्य या निरोधगामिनी प्रतिपद् प्राय: आर्य अष्टांगिक मार्ग से अभिन्न प्रतिपादित है।
- उनके यह आठ उदाहरण १) आर्य अष्टांगिक मार्ग के एवज में पंचशील को प्रचारित करना.
- तथागत ने अपने अन्तिम प्रवचन में कहा, “ सुभद्र! तथागत के धम्म-विनय में आर्य अष्टांगिक मार्ग है.
- वह दुख निरोध गामिनी, प्रतिपदा परम सत्य, “ आर्य अष्टांगिक मार्ग ” है. ” वह इस प्रकार है.
- उनपर ही विश्वास किया जाए तो बुद्ध के सुखी जीवन के “ आर्य अष्टांगिक मार्ग ” का प्रयोजन ही नहीं रहता?
- जहां जरुरी है वहा शांति, क्रांति का मार्ग बुद्ध का “ आर्य अष्टांगिक मार्ग ” ही शिक्षा देता है, पंचशील नही.
- -संसार में दुख है-दुख का कारण है-कारण है तृष्णा-तृष्णा से मुक्ति का उपाय है आर्य अष्टांगिक मार्ग ।
- -संसार में दुख है-दुख का कारण है-कारण है तृष्णा-तृष्णा से मुक्ति का उपाय है आर्य अष्टांगिक मार्ग ।
- अफ़सोस की बाते यह है की गौतम बुद्ध ने जिन आठ अंगों के “ आर्य अष्टांगिक मार्ग ” को सुखी जीवन का मार्ग बताया.
- विश्व में नक्षलवाद और आतंकवाद फैला है तो उसका मुख्य कारण आर्य अष्टांगिक मार्ग के ऐवज में “ पंचशील ” को बढ़ावा देने से. उससे न बौद्ध अपनी रक्षा इंसानी हमलों से करने में सफल रहे और अबौद् ध.
- (डॉ. बाबासाहब अम्बेडकर: राइटिंग एंड स्पीचेश, वालुम-१ ०, पेज-१ ० ८) बुद्ध का धम्म ही “ आदर्श जनतन्त्र ” है, जिसकी गरिमा हमें “ आर्य अष्टांगिक मार्ग ” से मिलती है.
- तथागत बुद्ध ने अपने प्रथम धम्मचक्र प्रवर्तन में भी “ आर्य अष्टांगिक मार्ग ” को ही सुखी जीवन का मार्ग बताया और अंतिम क्षण में भी “ आर्य अष्टांगिक मार्ग ” का ही बोध किया, जो इसे जानेगा वहीँ जागृत होगा.
- तथागत बुद्ध ने अपने प्रथम धम्मचक्र प्रवर्तन में भी “ आर्य अष्टांगिक मार्ग ” को ही सुखी जीवन का मार्ग बताया और अंतिम क्षण में भी “ आर्य अष्टांगिक मार्ग ” का ही बोध किया, जो इसे जानेगा वहीँ जागृत होगा.
- आठ सीढ़ियों का मतलब है बौद्धो का आर्य अष्टांगिक मार्ग तथा 12 सीढ़िययों का मतलब द्वादशांग प्रतीत्य समुत्पाद (= प्रत्यय से उत्पत्ति का सिद्धान्त) आगे की रेत की पहाड़ी पर बने बहुत से कमरे, योगाभ्यसियों के रहने तथा ध्यान आदि के लिये थे।
- जायज है, अगर ब्राह्मण साधू “ आलार कलाम ” की ध्यान, समाधी और विपस्सना ही सबकुछ सुख प्रदान करने में कामयाब होती तो गौतम बुद्ध को अलग जाकर चिंतन-मनन द्वारा “ आर्य अष्टांगिक मार्ग ” को इजात करने की क्या जरुरत थी?
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